जीवन में बहुत सारी मुश्किल आने के बाद जीवन में नई ऊर्जा कैसे मिलेगी! किसी मोड़ अपने प्रिय का किसी कारण से साथ छूट जाने पर जिंदगी कितनी अकेली हो जाती है. अपनी ही आंखों के सामने उसे खोना आसान तो नहीं जिसके साथ, जिसके लिए जीवन के ख्वाब बुने गए थे.
हमसफर के बिना जिंदगी आसान नहीं. लेकिन जीवन का असली संघर्ष यही है कि वह हमसे बिना पूछे हमारी ओर चुनौतियां उछालता रहता है. जिंदगी किसी के लिए नहीं ठहरती. यह एक नियम है. लेकिन हमारा मन नियमों से कहां चलता है. वह तो अपनी ही गति से आगे बढ़ता है. हर रिश्ता कीमती है. हर अहसास जरूरी है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि जीवन ही अंतिम विकल्प है. उससे परे कुछ नहीं. हर हाल में हमें जिंदगी का साथ देना है. चीज़ें कितनी ही मुश्किल क्यों न हों, लेकिन जीवन से हारने का अर्थ केवल स्वयं का हारना नहीं, बल्कि उन सबके प्रति अविश्वास, आस्था की कमी है, जो हमसे प्रेम करते हैं, जिनसे हम प्रेम करते हैं. जीवन नई ऊर्जा और ऊष्मा अपने भीतर समेटे हुए है. अगर वह आपके अवचेतन मन तक नहीं पहुंच रही तो इसके मायने यह हैं कि आपका स्वयं से संबंध का पुल कहीं से टूटा है
कुछ है, जो दरक गया है. कुछ है, जो टूटा है. उस टूटे को जोड़ना है. उस दरार को स्थाई होने से पहले बचाना है. जिंदगी लंबी है, लेकिन इसके मायने यह नहीं कि उसकी ऊर्जा को यहां-वहां बहने दिया जाए
जिंदगी की भागदौड़ में हम एक सामान्य, साधारण नियम भूल जाते हैं कि जिंदगी उतनी ही अनिश्चित है, जितनी निश्चित मृत्यु है. लेकिन जब हम सुख की नाव में सवार होते हैं तब भी समय गुजरता तो अपनी ही गति से है, लेकिन हमारा उस पर ध्यान नहीं होता. दूसरी ओर हम किसी के अपने साथ न रहने, अपने से दूर हो जाने, किसी का साथ छूट जाने पर दुखी होते हैं तो लगता है समय कटे कैसे. हर पल भारी लगता है. ऐसा लगता है कि घड़ी की सुई पर पहाड़ पर बैठ गया है. उसे आगे बढ़ने से रोक रहा है. असल में यह पहाड़ तो है लेकिन मन का बुना हुआ. मन का बनाया हुआ. समय के साथ यह पहाड़ हल्का होने लगता है, लेकिन गंभीर चुनौती उनके सामने है, जिनका मन समय के साथ हल्का नहीं होता. जिनके बादल थम जाते हैं, उनके मन बारिश में कैसे भीगेंगे. जब तक भीगेंगे नहीं, कोमलता और अनुराग मन के भीतर नहीं पहुंच पाएंगे.
जिंदगी ऐसा मुक्त आकाश है, जिसमें कई चांद हैं. एक से बढ़कर एक. इसमें इतना रोमांच और गहराई है कि हम अपने मन को संवार लें तो स्वाद कई गुना बढ़ जाएगा. सिनेमा और नाटक इसके केवल हिस्से बनकर रह जाएंगे. मैं आपसे एक निजी अनुभव साझा करता हूं. सिनेमा के प्रति मेरा आकर्षण रहा है. लेकिन जब से जीवन संवाद का सफर शुरू हुआ. मन के साथ संवाद के अनुभव बढ़े, अनेक विषयों से मेरी रुचि धीरे-धीरे कम होती गई. सिनेमा भी इनमें से एक है