असल परिवार में हो आपसी प्यार एवं मेल-मिलाप


परिवार का मतलब केवल खून के रिश्ते तक ही सीमित नहीं होता। असल  परिवार उसे कहा जाता है जिसमें खून के रिश्ते के साथ-साथ आपसी प्यार, मेल-मिलाप, एक-दूसरे के सुख-दु:ख बांटने, बच्चों का सही तरीके से पालन-पोषण करने, विपति के समय साथ देने वाले सदस्य हों। परिवार एक ऐसी कड़ी भी है जो मनुष्य को संस्कार, जिम्मेदारी, समाज व सुरक्षा से जोड़ता है। संस्कार की जब बात आती है तो सुसंस्कार और अपसंस्कार ही परिवार की कुणडली वांचते हैं।


इसी प्रकार समाज का तारतम्य होता है। जिस समाज में मनुष्य का पालन-पोषण होता है या जिस परिवेश में रहता है उसका उस पर क्या प्रभाव पड़ रह है इस पर नजर रखने के लिए परिवार को बड़ी जिम्मेदारी निभानी पड़ती है। परिवार के बड़े छोटों को सुरक्षा भी  प्रदान करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात आपसी विश्वास कायम रखना होता है। जब तक प्रत्येक सदस्य का एक-दूसरे पर विश्वास नहीं होगा तो परिवार में एकता की आश करना ही बेकार है।


बदलते समय के साथ-साथ परिवार की परिभाषा भी बदलती जा रही है। अपितु यह कहना सही होगा कि सिमटती जा रही है। एकल परिवार का प्रचलन ज्यादा देखने को मिल रहा है। इसके पीछे कई कारण संभव हैं। परिवार के सदस्यों की आपसी तकरार, रहन-सहन का स्तर, सदस्यों की आय में असमानता, रहने के स्थान की कमी, स्टेट्स सिंबल, बड़े-बुजुर्गों की टोका-टाकी, पारिवारिक कलह, तलाक आदि। संयुक्त परिवार तो नाममात्र के ही हैं।


शहर हों या गांव संयुक्त परिवार कहीं-कहीं ही देखने को मिलेंगे। परिवार चाहे संयुक्त हों या एकल उसका महत्व हर सदस्य को समझना चाहिए। विश्व में 15 मई को 'विश्व परिवार दिवस' भी इसी उद्देश्य को लेकर मनाया जाता है। ताकि परिवार की अहमियत को हरेक समझ सके